जुबिन गर्ग, जिनका जन्म 18 नवम्बर 1972 को मेघालय के तुरा में हुआ था, असम के एक महान गायक, संगीतकार, अभिनेता और समाजसेवी थे। उन्होंने असमिया, हिंदी, बांग्ला, तमिल, तेलुगु, मराठी, भोजपुरी, उडिया, गुजराती, मलयालम, कन्नड़, पंजाबी, नेपाली, सिंधी, उर्दू, संस्कृत, और अन्य भाषाओं में गाने गाए। उनका संगीत असम की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
जुबिन गर्ग का असली नाम जुबिन बर्थाकुर था। उनके पिता, मोहन मोहन बर्थाकुर, एक न्यायाधीश थे और कवि भी थे। उनकी माता, इली बर्थाकुर, एक गायिका थीं। संगीत के प्रति रुचि उन्हें बचपन से ही थी। उन्होंने असमिया लोक संगीत, शास्त्रीय संगीत, और बॉलीवुड संगीत में अपनी पहचान बनाई।
संगीत करियर:
जुबिन गर्ग ने अपने करियर की शुरुआत असमिया फिल्मों से की थी। उनकी आवाज़ में एक विशेष आकर्षण था, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती थी। बॉलीवुड में उन्होंने “याली” (फिल्म: “गंगाजल”) जैसे हिट गाने गाए, जो आज भी लोगों की जुबां पर हैं। उनका संगीत न केवल मनोरंजन का साधन था, बल्कि समाजिक संदेश भी देता था।

समाजसेवा और सक्रियता:
जुबिन गर्ग ने संगीत के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया। वे असम की संस्कृति और भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए हमेशा सक्रिय रहे। उनकी आवाज़ में असम की मिट्टी की खुशबू थी, जो श्रोताओं को अपनी ओर आकर्षित करती थी।
निधन और श्रद्धांजलि:
19 सितम्बर 2025 को जुबिन गर्ग का निधन सिंगापुर में हुआ। वे नॉर्थ ईस्ट इंडिया फेस्टिवल में प्रदर्शन के लिए वहां गए थे। उनकी मृत्यु से संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ गई। असम सरकार ने उन्हें राज्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी।
निष्कर्ष:
जुबिन गर्ग का योगदान असम की संगीत धारा में अनमोल रहेगा। उनकी आवाज़, उनके गीत, और उनकी सक्रियता हमेशा लोगों के दिलों में जीवित रहेगी। वे केवल एक गायक नहीं, बल्कि असम की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षक थे।
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