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मनोज से मुंतशिर बनने तक की कहानी

Category: Entertainment

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मनोज मुंतशिर शुक्ला का जन्म और प्रारंभिक जीवन

कहते हैं न कि जो चाय नहीं पीते, इश्क़ क्या समझेंगे।
साल 1997 की कड़कती ठंडी रात थी और दुबला-पतला लड़का चाय की तलाश में चाय की गुमटी पर पहुँचा। हाथ में कुल्हड़ वाली चाय की चुस्की लेते हुए रेडियो पर एक शब्द सुनता है – “मुंतशिर”, और चाय की हर चुस्की के साथ यह शब्द उसके अंदर घुलता गया। लड़का इस निर्णय पर पहुँचा कि अब नाम यही बनेगा।

आज मैं आपको जिस विश्वविख्यात, ख्याति प्राप्त चेहरे से आपका परिचय कराने जा रहा हूँ, उन्हें किसी लेख या ट्रेंड की जरूरत नहीं पड़ती।
पांच साल का बच्चा जब अपने हाथों में तिरंगा लेकर तुतलाते जुबान में गुनगुनाते हुए गाता – “वो माई मेरे, क्या फ़िकर तुझे”, तो क्यों आँख से दरिया बहता है।
तुम कहती थी – “तेरा चाँद हूँ मैं और चाँद हमेशा रहता है”।
और दूर कहीं एक गुमसुम आशिक अपने महबूब के लिए गुनगुनाता है – “तेरी गलियाँ”।

संघर्ष और मुंबई का सफर

और अपने नए-नवेल प्रेम को उजागर करता प्रेमी जब गाता है – “कैसे हुआ, इतना जरूरी कैसे हुआ”, और जब बात देश की आती है, तो अपनी मिट्टी से लिपटकर हर भारतीय गर्व से कहता है – “तेरी मिट्टी में”।
और जब बात राम की होती है, तो कलम लगातार चलती है और लिखते हुए कहता है – “मेरे घर राम आए हैं”, क्योंकि जिस अनमोल रचना का जिक्र मैं अपने शब्दों में कर रहा हूँ, वह खुद ही कहता है – “मेरी फितरत है मस्ताना”।

जी हाँ, हम बात कर रहे हैं अमेठी, गौरीगंज में जन्मे मनोज मुंतशिर जी की, जो आज एक प्रसिद्ध मनोज मुंतशिर गीतकार और डायलॉग राइटर के रूप में जाने जाते हैं।

चुनौतियाँ और विवाद

1999 में मुंबई जाकर करियर बनाने के लिए निकल पड़ा, गौरीगंज की मस्त गलियों से महानगरी की भीड़भाड़ और तंग गलियों में।
लेकिन उन्हीं के लिखे हुए शब्द को सत्य साबित करने – कौन है वो, कहाँ से आया, चारों दिशाओं में तेज़ सा वो छाया – इस बात को वर्षों लग गए। लड़ाई चलती रही, धक्के और रिजेक्शन मिलते रहे।
लेकिन कौन जानता था, मुंबई लोकल की सनसनी हवा शुक्ला जी कहती थी – “कौन तुझे यूँ प्यार करेगा?” तो उसके जवाब में मनोज मुंतशिर जी रेलवे स्टेशन के खाली डेस्क पर मुस्कुराहट के साथ कहते थे – “मैं फिर भी तुमको चाहूँगा, क्योंकि वादा है तो है”।

कैरियर की ऊंचाइयाँ

समय, दौर बदल गया। उदय हुआ एक नया सूरज, जिसकी गूंज देश-विदेश में फैल गई। चाहे बच्चे हों, जवान हों या बुजुर्ग, माँ सरस्वती के इस लाल को सबने हाथों-हाथ लिया और पहुँचाया एक शिखर पर।
गाड़ी पटरी पर आ गई थी, एक अधूरी ख्वाहिश – राष्ट्रीय पुरस्कार की।

एक बार बड़े मंच पर किसी गली बॉय जैसे, ना गाने योग्य ना लिखे योग्य गाने को “तेरी मिट्टी” से ज्यादा सराहना मिली तो दिल फिर टूटा।
लेकिन यह माई का लाल कहाँ रुकने वाला था। और अंततः, सर्वोच्च मंच पर इन्हें बुलाया गया और उसी मिट्टी के लिए इन्हें नेशनल अवार्ड मिला।

जुनून से बनी पहचान

आज मनोज मुंतशिर सिर्फ़ गीतकार और डायलॉग राइटर ही नहीं हैं, बल्कि उनके गाने देश-विदेश में लोगों के दिलों को छूते हैं। उनकी रचनाओं में देशभक्ति, प्रेम और भावनाओं का ऐसा संगम है जो हर भारतीय को गर्व महसूस कराता है।

To be Continued…..

— Naveen Pandey

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